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अच्छा बोलना अच्छा सोचना और कुछ अच्छा करके दिखाना यह सब अलग अलग बाते है इनके अन्तर को समक्षने वाला ही तरक्की कर सकता है। खासकर राजनीति मे तो इन बातो का अन्तर समक्षना अतिआवश्यक है । अरविन्द केजरीवाल ने राजनीति के क्षेत्र मे एक अलग भुचाल लाकर खङा कर दिया है एक नयी पार्टी का अचानक आकर इस तरह छा जाना वाकई काबिले तारीफ है। जनता राजनीति के वर्तमान स्वरुप से परेशान हो चुकी है । भस्टाचार महगाई परिवारवाद कितने ही मुददे है जो राजनीति के स्वरुप को विक्रत कर रहै है । ऐसे मे जनता को एक विकल्प की तलाश थी जो उन्हे आप के जरिये मिला । दिल्ली मे आप की सफलता के कई गम्भीर अर्थ निकतलते है जिन्है समक्षना अतिआवश्यक है । यह सिर्फ आप की जीत नही वर्तमान राजनीतिक व्यवस्था की हार है वह व्यवस्था जिससे जनता बिलकुल ऊब चुकी है और हर हाल मे उसका विकल्प चाहती है चाहे फिर इसके लिये उसे एक नयी अपेक्षाक्रत कम अनुभवी पार्टी को मौका देने का जोखिम लेना पडे ।
अरिवन्द केजरिवाल ने जनता को एक नया विकल्प दिया और जनता ने इस विकल्प को अपनाया । परन्तु यह विकल्प कितनी दूर तक जाता है यह काबिलेगौर है । अगर हम मान ले की जैसा अरविन्द जी दावा करते है वह राजनीति के इस दलदल मे एक ईमानदार व्यक्ति है जो राजनीति मे सुधार के इरादे से कदम रखे है न की किसी व्यक्तिगत स्वार्थ के लिये फिर भी क्या यह इतना आसान होगा ??
अच्छे इरादे रखना आसान है पर उन इरादो को सच करना असली परीक्षा है राजनीति सिर्फ अच्छे या बुरे इरादो से नही चलती इसके लिये राजनीतिक समक्ष का होना अतिआवश्यक है ऐसा न होता तो आदिकाल से राजनीति पर गम्भीर चिंतन की परम्परा न होती । ओशो को पालिटिक्स और कौटिल्य को अर्थशास्त लिखने की आवश्यकता न पडती । राजनीति मे सफल होने के लिये दुर तक जाने के लिये राजनीतिक समक्ष का विकसित होना आवश्यक है वरना अचानक मिली सफलता को सम्भाल पाना बनाये रखना सबके बस की बात नही होती इसलिये अरविन्द जी तथा उनकी पार्टी के हित के लिये आवश्यक है की राजनीति की इस बिसात पर हर कदम फुक फुक कर रखे क्योकी यहाँ एक गलती काफी है उनके तथा उन पर भरोसा करने वाली जनता की उम्मीदो पर पानी फेरने के लिये……………………………..
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