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हिंदी दिवस पर ‘पखवारा’ के आयोजन का कोई औचित्य है या बस यूं ही चलता रहेगा यह सिलसिला? सम्मान हमेशा दिल से होता है , पखवारो से नही अगर दिल से किसी भी चीज का सम्मान करते है तो उसके लिये हमे पखवारो के आयोजनो कि आवश्यकता नही होती और अगर दिल मे सम्मान का भाव नही है तो कितने भी पखवारे आयोजित कर लो कोई भी दिवस मनाओ कुछ नही होने वाला हिन्दी भाषी राष्ट मे रहकर भी अगर हिन्दी को सम्मान दिलाने के लिये हमे संघर्ष करना पडे तो इससे अधिक शर्म कि बात और क्या होगी हिन्दी कि स्थिती मे सुधार तब तक नही आ सकता जब तक खुद भारतवासी हिन्दी बोलते समय शर्म का नही गर्व का अनुभवो करना न सीख ले । आज भारत का एक बहुत बङ वर्ग हिन्दी बोलने मे शर्माता है इगंलिश नही आती तो आप आउटडेटड है हिन्दी नही आती तो चलेगा । मै यह नही कहती कि इंगलिश बोलना पङना गलत है पर हिन्दी बोलते वक्त शर्म का अनुभव करना गलत है । इंगलिश ग्लोबल लैग्वेज है आज भारत का युवा पूरी दुनिया मे अपनी घाक जमा रहा है भारतियो की योग्यता के चर्चे सारी दुनिया मे है , भारत के डाक्टर, इंजीनियर ,मैनेजर सारी दुनिया मे फैले है ऐसे मे उन्है दुनिया को समक्षना जरूरी है ऐसे मे उनकी भाषा को समक्षना तरक्की करने का एक बेहतर माध्यम बन सकता है भारत के अन्दर भी कितनी अन्तरराष्टीय कम्पनीया व्यापार के उद्देश्य से आयी है ऐसे मे दुनिया के साथ कदम ताल मिलाने के लिये अंग्रेजी को समक्षना उपयोगी है परन्तू इसका यह मतलब नही की हम अपनी मातभाषा का सम्मान करना भूल जाये बचपन मे घरो मे संस्कार दिये जाते है घरवाले सिखाते है कि अपने से बङो का सम्मान करो छोटो को प्यार दो चाहे उनसे हमारा कोई रिश्ता हो या न हो विदेशो मे बच्चे पङोसी को मिस्टर मिस (और उनका नाम) इस प्रकार सम्बोधित करते है पर हिन्दोस्तान मे हर पङोसी चाचा ताऊ अंकल आंटी दीदी भाभी किसी न किसी रिश्ते से जुङा होता है दुसरो को सम्मान देना हमारी परम्परा है पर हम इसके लिये अपनो का अपमान तो नही करते जितनी इज्जत हम बाहर वालो की करते है उससे अधिक घरवालो की दुसरो कि माँ को सम्मान देना हमारे संस्कार है पर अपनी माँ के सम्मान की रक्षा हमारा फर्ज है यही स्थिती भाषा के परिपेक्ष मे भी है किसी भी भाषा को सिखना बोलना उसे सम्मान देना गलत नही है पर जाने अनजाने अपनी भाषा को भुला देना उसका अपमान करना गलत है इसलिये बेहतर यह होगा कि हम एक दिन हिन्दी दिवस मना कर अपने र्कत्वयो कि इतश्री न करे वरन दिल से अपनी भाषा का सम्मान करे तो हमे किसी हिन्दी पखवारे के आयोजन की कोई आवश्यकता नही होगी
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