pragati pari
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में चुप हु क्यों चुप हु मे
दिल में तो कितना कुछ है कहने को फिर भी चुप हु में
दिल की बाते कहना आसन कब हुआ है
जो कह दिया किसी ने तो कोई इल्जाम ही लगा है
शायद यही वजह है की चुप हु में
चुप हु में क्यों चुप हु में
यु तो कभी कभी ख़ामोशी भी बोलती है
दिल के अल्फाजो को इशारो से खोलती है
पर समझ नही आता क्यों चुप हु में
धड़कने चीख रही है सांसो से आवाज आ रही है
फिर भी आलम ये है की चुप हु में
क्यों चुप हु में
इस मतलबी दुनिया में बोले भी तो क्या
दिल के राज़ खोले भी तो क्या
इसलिए शायद चुप हु में
क्यों चुप हु में
दिल के गुब्बार को कब तक दिल में रख पाउगी
देखते है आखिर कब तक चुप रह पाउगी में
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