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कब बद्लेगे हम
हम अक्सर सुनते है की जमाना बदल रहा है .लोगो की सोच बदल रही है वक़्त के साथ हो रहे बदलाव के कई समर्थक भी मिल जायगे और विरोधी भी
जमाना बदल रहा है बदलते वक़्त के साथ बदलने में ही समझदारी है बदलाव को स्वीकार किया जाना चाहिए ये बाते हमे अक्सर सुनने में मिल जाती है पर दूसरी और क्या जमाना आ गया है क्या होगा इस देश का संस्कृति का नाश हो रहा है संस्कार खो रहे है ओफ कितनी बाते कौन सही है कौन गलत एक लम्बी बहस का विषय हैं चलिए छोड़ते है इसे पर इस बदलती दुनिया में सड़क पर चलते चलते एक ख्याल आया मेरे जहन में और वो ख्याल युही नहीं आया कुछ देख कर आया ख्याल था आखिर हम अपनी मानसिकता को कब बद्लेगे
सड़क पर बाइक से एक लड़का जा रहा था पीछे एक लड़की धुप की वजह से मुँह को कपडे से बाधकर बड़ी थी उन्हें देखकर एक महाशय ने तुरंत फ़रमाया क्या ज़माना आ गया है बेशर्मो की तरह सड़क पर घूम रहे है गर्लफ्रेंड बॉयफ्रेंड बनाने के सिवा नयी पीढ़ी के पास कोई काम नहीं है क्या होगा इस देश का
मेने उन महाशय से पूछा की क्या वो इन दोनों को जानते है उनका जवाब था नहीं तो मैने पूछा की वो कसे कह सकते है की यह बॉयफ्रेंड गर्लफ्रेंड थे भाई बहन के एक साथ घुमने पर क्या पाबन्दी है हमारे देश में और हो सकता है वो दोनों २ अच्छे दोस्त हो बिना जाने हम किसी पर उगली केसे उठा सकते है और अगर वो गर्लफ्रेंड बॉयफ्रेंड भी है तो उनके घुमने पर पूरी नयी पीढ़ी पर आरोप केसे लगा सकते है और किसी के व्यक्तिगत जीवन पर बात करके हम केसे देश का भला कर रहे है
आज प्यार के नाम पर होने वाले अपराधो में बढ़ोतरी हो रही है लोगो का नेतिक पतन भी हो रहा है संस्कारो की महता घट रही है पर इन बातो का विरोध करने का ये कौन सा सही तरीका है हम लोगो पर कीचड़ उछाल कर गंदगी साफ़ नहीं कर सकते है अगर संस्कारो और संस्कृति को बचाना है तो सबसे पहले उन्हें सही तरह से समझाना होगा फिर हम दुसरो को समझा सकते है बात बात पर संस्कृति की दुहाई देने से संस्कृति की रच्छा नहीं की जा सकती है सबसे पहली जरुरत चीजों को सही नजरिये से देखने की और समझाने की है तभी भटकाव की स्थिति से बचा जा सकता है और नयी पीढ़ी को एक सही मार्गदर्शन दिया जा सकता है
पुरवाग्रह से लिया गया फ़ेसला कभी सही नहीं हो सकता है
सोच को बदलो नज़ारे बदल जायगे …………….
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