pragati pari
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अपने लफ्जो को अल्फाज दे केसे इस ख़ामोशी को आवाज़ दे कसे
साधू के भेष मे लुटेरे मिलगे अंधेरो से घिरते उजाले मिलेगे
जो सचाई को ढूढने हम चलेगे तो राह मे झूठ बहुतेरे मिलेगे
जो सूरज ही छिप जायगा बादलो के पीछे तो धरा को प्रकाश दे कसे
जिन्हें करनी चाहिए रास्ट्र की सेवा वही खा रहे भ्रस्ताचार की मेवा
जिन युवाओ को कहते है देश का भविष्य उन्हें खुद नहीं पता है अपना भविष्य
असत्य के इस मायाजाल मे सत्य कहे कॆसे पर अन्याय के इस दलदल मे चुप रहे कसे
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