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जिंदा हु तो जीने भी दो ,,,,,,,

pragati pari
pragati pari
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माना की एक लड़की हु मै पर जीने का हक है मुझको भी
ये आसमा मेरा भी है ये ज़मी मेरी भी है
मै भी वो करना चाहती हु जो मै करना चाहती हु
बिना रोक टोक के खुले आसमा मै उड़ना चाहती हु
क्या पहनू कहा जाओ किससे बात करू क्या बात करू
ये हक मेरा है मुझसे मत छीनो
जिंदा रखकर जीने का हक मुझसे मत छीनो
मेरा अपना अस्तित्व है मेरी अपनी पहचान
मेरी अपनी सोच है मेरी अपनी चाहत
मेरे कपड़ो से समाज की सोच नहीं सुधर सकती
ऐसा होता तो छोटी छोटी बच्चिया और बुजर्ग औरते बलात्कार का शिकार नहीं बनती
अगर मान लू ये दलील की समाज मै बड़े व्यभिचार का कारण नयी पीडी की मॉडर्न सोच है
तो महाभारत काल मै द्रोपदी का चीरहरण क्यों हुआ था
सच तो ये है की आप जीने ही नहीं देना चाहते सभ्य सोच को नेतिकता को मानवता को चाहत को समानता को
और मानाने को तैयार भी नहीं है अपनी सोच की बर्बरता को
अब तो बदलो कुछ तो बदलो इंसान हो देवता नहीं बन सकते पर दानव बनाना भी तो जरुरी नहीं है ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

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